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पुरूष, स्त्री हो जाते हैं

जब कभी हृदय में, कल्पनाओं के बीज पाते हैं,

पुरुष, कठोर उंगलियों से, कोमल कलम उठाते हैं।

रस, छंद, अलंकार, सब के सब सजाते हैं,

बेसुरी आवाज़ में, धीमे धीमे, कुछ गुनगुनाते हैं।

पुरुष कृष्ण बनकर, राधा क

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