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जानता हूँ प्रिय

जानता हूं प्रिय, मैं समय की गति
मैं नहीं, तुम नहीं हो, सदा के लिए,
शब्द मैं लिख रहा हूं, यही सोचकर
ये रहेंगे सदा विपदा के लिए।

कह गए कृष्ण भी, देह नश्वर सुनो
आज है क्या पता, कल रहे ना रहे,
प्राण की गंग जो बह रही देह में
एक तूफां उठे, फिर बहे ना बहे।

वैसे ये भी सुना है, सुनो प्रेम के
ये जो संबंध हैं, ये जगत के नहीं,
प्रीत सच्ची

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