बिन कर्म केवल बात से, मानुष जनम पलता नहीं,
जो काट दे भीतर का तम, दीपक यूँ ही जलता नहीं ।
हों रश्मियाँ भीतर प्रखर , उद्दीप्त उर रवि सा बने,
रावण दहन दीपित मनुज, स्वच्छंद मन कवि सा बने ।।
हो स्वच्छ तन मन
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बिन कर्म केवल बात से, मानुष जनम पलता नहीं,
जो काट दे भीतर का तम, दीपक यूँ ही जलता नहीं ।
हों रश्मियाँ भीतर प्रखर , उद्दीप्त उर रवि सा बने,
रावण दहन दीपित मनुज, स्वच्छंद मन कवि सा बने ।।
हो स्वच्छ तन मन