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गीता सार | नितिन कुमार हरित | १ |
जीवन के सुरभित पुष्पों पर, बन के यम मंडराऊं कैसे?
जीवन यदि मैं दे ना सकूं तो, मृत्यु का पान कराऊं कैसे?
मेरे हैं रिश्ते नाते सब से, इन पर बाण चलाऊं कैसे?
हे केशव इतना समझा दो, इस मन को समझाऊं कैसे?
शून्य ही केवल सत्य जगत में, जीवन चिन्ह है खालीपन का,
शून्य से उपजा शून्य को जाए मृत्यु समय सुन पूर्ण हवन का,
माटी माटी से मिल जाए, भ्रम ना टूटे चंचल मन का,
मैं ना मरूंगा, तू ना मरेगा, जीना मरना खेल है तन का।
ये जीवन एक युद्ध है अर्जुन, पल पल लड़ना काम हमारा,
उसका जगत में मोल ना कोई, जो जीवन के रण में हारा,
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