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एक गांव मेरे अंदर

मेरे अंदर 
आज भी है एक गांव
जहां आज भी हैं मिट्टी के घर
मिट्टी के रास्ते

जहां आज भी चौपाल लगतीं हैं
हुक्के गुड़ गुड़ करते हैं

रात को आँगन में कई खाट 
एक साथ लगा दी जाती हैं
और आपस में बाते करते करते
हम कब सो जाते हैं, पता ही नहीं चलता

जहां आज भी घंटियों की आवाज़ें आती हैं
दूर कहीं मंदिरों से नहीं,&
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