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मेरी कविताएं

अगर तुम्हें कभी मेरी याद आए,

तो इन कविताओं को पढ़ना,

हाथों की लकीरों को 

मैंने स्याही में डुबोया है,

तब जाकर कागज पर कुछ उकेरा है।


आंगन में इधर- उधर

बिखरे रहते थे कमबख्त,

एक चांदनी रात में अचानक से

पकड़ कर डायरी में बंद कर दिया मैंने।


तुम्हें इनको समझने में

थोड़ी मशक्कत तो होगी ,

ये वही बंजारे ख्याल हैं 

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