ये महफिलें हैं रेेशम से लदे मख़सूस लोगों की ,
हम फटे कुर्ते में ही खुद को समेटने का हुनर जानते हैं।
वो दूर जाके बैठते हैं जैसे पहचानते ही नहीं ,
मै खुदा को भी झुठला देता हूँ उनको कभी नहीं।
वक्त का तजुर्बा भ
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हम फटे कुर्ते में ही खुद को समेटने का हुनर जानते हैं।
वो दूर जाके बैठते हैं जैसे पहचानते ही नहीं ,
मै खुदा को भी झुठला देता हूँ उनको कभी नहीं।
वक्त का तजुर्बा भ