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चक्रव्यूह

चक्रव्यूह


है काल चक्र जो चल रहा मनुज पर

बन बीत रहा विषम प्रहर मनुज पर

जिस चक्र के व्यूह में फंसा मनुज है

उस व्यूह का कोई तोड़ नहीं है ।


अर्जुन है गांडीव नहीं है

सारथी है पर कृष्ण नहीं है

अनंत देवव्रत पर भीष्म नहीं है

असत्य से बढ़कर सत्य नहीं है

उस व्यूह का कोई तोड़ नहीं है ।


कर्म क्षेत्र अब समर क्षेत्र है

चहुँ ओर अब रण क्षेत्र है

शकुनि रूप लिए विदुर का

अब बन बैठा नीतिज्ञ है

इस व्यूह का कोई तोड़ नहीं है।


सैकड़ों द्रौपदी चीख रही है

उनपर जो कुछ बीत रही है

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