![सौंदर्य की परिभाषा's image](/images/post_og.png)
लो फिर बसंत आयी. फिर से बसंत आयी..
संग संग बहार लायी.. लो फिर बसंत आयी.
पतझड़ को मात दे कर...सब वृक्ष.. खिल रहे हैं....
कोपल का साथ पा कर.... पत्ते.. सिहर रहे हैं...
पत्तों को पा के.... फिर से... डाली भी हँस रहीं हैं..
कलियाँ भी फूल बन के... हर दिन उभर रहीं हैं.
फिर बाग में पपीहा... कूँह-कूँह सा गूँजता है..
फिर मंजरी से लद कर... हर वृक्ष झूमता है...
मल्हार सी मधुरता... कानों में गुनगुनाई...
लो फिर बसंत आयी... फिर से बसंत आयी.
तितली के झुरमटोँ का... फूलों पे फिर से आना..
मीठी सी सरगमों में... भवरों का गीत गाना ,
कोयल की कूक सुन कर.. पत्तों का सरसराना...
ऋतुराज आगमन पे
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