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दास्तानें जिंदगी कुछ अजब.. कुछ ला-जवाब है,
सुकूँ हर बार..नया सा...देती....बे-हिसाब है...
कोई.. मुका औ मंजिल..जब भी तय करी...मैंने,
साथ..कितनों ने दिया...वो तो..बे-मिसाल है.
मुड़ के... जब देखती हूँ.. निशां अपने क़दमों के,
अक्स दिखतें हैं हजारों... थामें मुझे राहों में .
हमसफर जो भी मिले...सब में कुछ अलग सी बात थी ,
किसी मेँ कशिश... किसी में सौगात..थी .
किसी ने चलना.. किसी ने संभलना सिखाया मुझको..
किसी ने प्यार से.. पलकों पे बिठाया मुझको
कोई चला.. साथ मेरे..ब-मुश्किल कटीलीं राहों पे...
किसी ने.. नाकामियों से.. उबरना सिखलाया मुझको.
कुछ बिछड़ गये... कुछ आज भी साथ हैं.
लगता है जरूर उनमें...कुछ...खास बात है.
हमसफ़र जो भी मिले... शायद
सभी की शख्सियत में...कुछ न कुछ तो..नायाब सा रहा होगा...
तभी तो..हजारों की भीड़ में... नजरों ने... सिर्फ़ उन्हें ही चुना होगा..
कुछ तो..आज भी साथ चलते हैं... हकीकत में...
कुछ की यादें.. अभी भी सिमटी हैं... सीने में.
क्या कहूँ उनके...अंदाज