
इक सुन्दर सा वृक्ष लगा है
मेरी छोटी सी बगिया में...
मन-मोहक सी छवि उसकी
हर पल बसती मेरे मन में।
परिचय का मोहताज़ नहीं वो
सौंदर्य ही परिभाषा उसकी,
ईश्वर की है अदभुत रचना
चर्चा करते हैं सब जिसकी।
पुष्प जभी भी आते उस
पर
पत्ते विलुप्त... हो जाते हैं
उनका स्वरूप दर्शाने को
अपना..सौंदर्य..छिपाते हैं।
क्या गुलमोहरऔर क्या सेमर
क्या कचनार की कलियाँ प्यारी,
सब से सुन्दर अमलतास है
शोभा जिसकी सबसे न्यारी।
ज्येष्ठ मास के आते.. ही..
कलियाँ मुखरित हो जाती हैं
और अचानक न जाने कब,
फूलों में वे ढल जातीं हैं।
पुष्प पुष्प और पुष्प
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