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...........परिवर्तन...........
सब कुछ गतिशील है जग में..
सब कुछ आना-जाना है..
"मूल-मंत्र " ये..जीवन का..
शाशवत ये..सत्य पुराना है ,
आधारशिला उम्मीदों की...
आशा का...सम्बल माना है ,
नव सीमाओं के अंतरगत.... परिचय फिर..वही पुराना है.
फिर से त्रस्त सभी दिखते हैं...
फिर मन में सबके है पीड़ा...
ह्रदय-विदारक बातों ने फिर.... अंतरमन सब का चीरा...
सब भयभीत हुए बैठे हैं...
कब क्या..होगा जीवन में..?
पर आशा की एक किरण... विश्वास जगाती है मन में .
लॉक डाउन तो सीमित है...
पर गलियारे सब सूने हैं...
तेज हवाओं के झोंके...
कानों में आ.. फिर गूँजे हैं..
सूखे पत्ते.. पेड़ों से गिर...
फिर से ..कोराहम करते हैं..
खामोश सदाओं से अपनी..
मन में सूनापन भरते हैं .
न बच्चों का कोलाहल...
न मित्रों की महफिल है...
न कोई उत्सव न विवाह...
न त्यौहारों की हलचल है,
न बाग़ों में चहल-पहल...
न खुशबू ,न कोई रंगत है...
कैसे ये दिन
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