
" एक शिकायत - ईश्वर से "
आज शिकायत की ईश्वर से,
"कैसा ये उपहास किया...
हे ईश्वर!.तुमने हम सब से".
स्वयं सुरक्षित नीले नभ में,
हम को डाला चक्कर में.
प्रभु हँसे, मुस्का कर बोले...
"दोष मुझे क्यों देते हो?"
"अपने अपराधों की बोलो --
"क्या जिम्मेदारी लेते हो?"
सुन कर क्रोधित हो मैं बोली -
"मैंने क्या अपराध किया ?"
"सृष्टि के संचालन का जिम्मा..
तो सारा..तुम्हें दिया "
मंद मंद मुस्काये ईश्वर और फिर बोले हौले से -
"अपनी जिम्मेदारी मैं तो.. पूरी तरह निभाता हूँ,"
विधिवत सूरज चाँद उगाता,तारे भी बिखरता हूँ.
क्रम से दिन और रात हैँ आते, जुगनू भी चमकाता हूँ.
पशु पक्षी भी उड़ते नभ में, मछली जल में तेराता हूँ.
नदियाँ झरने पर्वत और पत्थर, पेड़ पौधे हवा और बादल,
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