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शायरी तेरी मेरी

बस वो दिलबर ही न समझे इश्क़ था बेहद मेरा

पूजते है लोग उल्फत में यहां मरकद मेरा


जुस्तजू ए हासिल ए मंजिल न पूछ इस दौर में

आदमी हूं और दानव होना है मकसद मेरा


तल समुंदर का बुलंदी आसमा की छू सकूं

ऐ ख़ुदा

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