
चाहे वो वक्त हो उस भोर की
जब तुम्हारे बिखरे उलझे बाल हो
या पलके नींद से भारी हो
तुम्हारे हाथ में झाड़ू हो
या हो उसी हाथ में कलम
चश्मा लगा कर लैपटॉप पर नज़र गड़ाए हो
या हो नज़रे कुकर की सीटी पर
तुम तब भी मुझ
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चाहे वो वक्त हो उस भोर की
जब तुम्हारे बिखरे उलझे बाल हो
या पलके नींद से भारी हो
तुम्हारे हाथ में झाड़ू हो
या हो उसी हाथ में कलम
चश्मा लगा कर लैपटॉप पर नज़र गड़ाए हो
या हो नज़रे कुकर की सीटी पर
तुम तब भी मुझ