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टुकड़े टुकड़े उतरती है जमाने में रात

टुकड़े - टुकड़े उतरती है जमाने में रात

हर-पल जुदा होती है आशियाने में रात

वक़्त बहुत लगाती है कहीं आने में रात

पूरीही बीत जातीहै कहीं सुलाने में रात

चुटकीभर लगातीनहीं कहीं जानेमें रात

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