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खोए हुए हैं सदियों से जिसमें वो सहरा नहीं मिलता

तस्वीर बनाना चहता हूँ अपनी रंग कोई गहरा नहीं मिलता

सूरतें मिलती हैं बहुत ख़ुद के लिए कोई चेहरा नहीं मिलता


किसे मालूम कौन उड़ा लेगया चमन से रंग ओ बहार तमाम 

उजड़े हुए दयार पर कहीं किसी का कोई पहरा नहीं मिलता


मुसलसल जारी है गै

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