विकास's image

माना चहुं ओर विकास हुआ है।

पर मानवता का ह्रास हुआ है।।


प्रगति जिसे हमने समझा, उसमें

अवनति का आभास हुआ है ।


कर्मयोगी बना न पाई, उस शिक्षा के

कोरेपन का आभास हुआ है ।


राग द्वेष और छल प्रपंच हो उठा मुखर

सत्य तथा निश्छलता का परिहास हुआ है।


इस राम और कृष्ण की कर

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