![विकास's image](/images/post_og.png)
माना चहुं ओर विकास हुआ है।
पर मानवता का ह्रास हुआ है।।
प्रगति जिसे हमने समझा, उसमें
अवनति का आभास हुआ है ।
कर्मयोगी बना न पाई, उस शिक्षा के
कोरेपन का आभास हुआ है ।
राग द्वेष और छल प्रपंच हो उठा मुखर
सत्य तथा निश्छलता का परिहास हुआ है।
इस राम और कृष्ण की कर
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