
हाथ में उसके तिरंगा था।
खुद वो शख्स अधनंगा था।
आंखों में उसकी बेकरारी थी।
उधर झंडा रोहण की तैयारी थी।
सजे हुए थे लड्डू थाल पर
शिकन थी इसके भाल पर
भूख से दोहरा हुआ जाता था
बेरोजगार,कुछ नही कमाता था
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हाथ में उसके तिरंगा था।
खुद वो शख्स अधनंगा था।
आंखों में उसकी बेकरारी थी।
उधर झंडा रोहण की तैयारी थी।
सजे हुए थे लड्डू थाल पर
शिकन थी इसके भाल पर
भूख से दोहरा हुआ जाता था
बेरोजगार,कुछ नही कमाता था