प्यासी धरा's image

कितनी प्यासी हूं मैं ,प्राण!

तुम क्यों चले नहीं आते ।

शांत करने को हृदय मेरा

क्यों नहीं रस सुधा बरसाते।


विदग्ध विरह बाला सी धरा मैं

और तुम निष्ठुर प्रवासी सजन से।

अब और न जलने दो काया मेरी

शीतल नीर बन उतरो गगन से ।।


मार्ग से अ

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