
सारे शहर से गुज़रा मैं, लेकिन
कोई भी सूरत पहचानी न मिली
संग जिसके खेला बचपन में
वो मुहब्बत की दीवानी न मिली
उससे मांगी किताब में मुझको
मुहब्बत की कोई निशानी न मिल
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सारे शहर से गुज़रा मैं, लेकिन
कोई भी सूरत पहचानी न मिली
संग जिसके खेला बचपन में
वो मुहब्बत की दीवानी न मिली
उससे मांगी किताब में मुझको
मुहब्बत की कोई निशानी न मिल