मुझको पत्थर कहने वाले !
मैं मोम था पहले ।
तब जिसने चाहा
मुझको जलाया, तड़पाया,
अपने-अपने सांचों में ढाला ।
शम्मा की शक्ल देकर ,
क़तरा क़तरा पिघलाया
शाम से सहर तक जलाया।।
मेरा कोई वजूद न था
सांचों के नाम से मैं जाना गया ।
जिन जिन शक्लों में ढाला
उनकी रंगत में पहचाना गया।।
फिर मैं पत्
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