
मैं कब तक चुप रहती ।
कब तक मैं तुम को सहती।।
विष ज्वाल लिए अंतर्मन में
शीतल सरिता बन कब तक बहती।
मां कहकर तुमने मुझसे
भोग्या सा व्यवहार किया।
इतने बंधन डाले मुझ पर
एक शूल हृदय के पार किया।
जननी को सीमाओं में बांधा
तटबंधों पर की पहरेदारी।
यत्र तत्र अवरोध खड़े कर
लहरों से मा
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