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इज़हार ए इश्क

मैं ही इस तरफ़ शोले सा दहकता क्यों रहूं।

कुछ आंच तेरी तरफ़ से भी तो आनी चाहिए।।


मेरे इश्क को सबने इबारत सा पढ़ा।

अब तेरे इश्क की भी कोई निशानी चाहिए।।


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