
भटका भटका रहता इसका मन
कितना आवारा है ये सावन
जब मर्ज़ी आ जाता है
जब मर्ज़ी छुप जाता है
बस में नहीं इसके अनुचर घन
कित
Read More! Earn More! Learn More!
भटका भटका रहता इसका मन
कितना आवारा है ये सावन
जब मर्ज़ी आ जाता है
जब मर्ज़ी छुप जाता है
बस में नहीं इसके अनुचर घन
कित