
महफ़िल में रहकर लोगों ने तो बस अपने काम निकालने चाहे,
एक हम ही थे बस जो दरबदर भटकते रहे।
चाहा तो हमने भी कि हम भी कुछ फायदा उठाएं,
पर कमबखत मां बाप के संस्कार हमेशा आड़े आए,
जिम्मेदारियां तो मुझे हमेशा घर की तरफ मोड़ती रहीं,
पर जिंदगी की कडियां एक एक कर साथ छोड़ती रहीं,
एक हम ही थे बस जो दरबदर भटकते रहे।
चाहा तो हमने भी कि हम भी कुछ फायदा उठाएं,
पर कमबखत मां बाप के संस्कार हमेशा आड़े आए,
जिम्मेदारियां तो मुझे हमेशा घर की तरफ मोड़ती रहीं,
पर जिंदगी की कडियां एक एक कर साथ छोड़ती रहीं,
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