
किंतु फिर यह सोचता हूँ
स्वार्थ में जीवन कहाँ है
मैं कहाँ टिकता हूँ
यदि मैं दूसरों के दुःख न जानूँ
दूसरों के कष्ट को समझा ना तो फिर शून्य हूँ मैं!
२
हे तृण को पुष्प
पल्लव को हरित कर देने वाले
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किंतु फिर यह सोचता हूँ
स्वार्थ में जीवन कहाँ है
मैं कहाँ टिकता हूँ
यदि मैं दूसरों के दुःख न जानूँ
दूसरों के कष्ट को समझा ना तो फिर शून्य हूँ मैं!
२
हे तृण को पुष्प
पल्लव को हरित कर देने वाले