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शीर्षक:- जीवन-एक साहित्य विधा

मेरा जीवन साहित्य की एक विधा हैं
बिना अदब जीवन इस प्रकार हैं
जिस प्रकार किसी भूखे की क्षुधा हैं
जिस प्रकार कृष्ण बिन राधा हैं 

मेरा जीवन मुक्तक काव्य की तरह हैं
इसकी बहुत सारी वजह हैं
न मुक्तक में , न ही मेरे जीवन में ,प्रबंधन हैं
क्योंकि हमारे मूल में ही अप्रबंधकीयता हैं 

मेरा जीवन एक नाटक हैं, स्वाँग हैं
क्योंकि यह संसार नाट्यशाला हैं, रंगमंच हैं
मैं इसका किरदार, संवाद, कठपुतली हूँ
और मेरी जीवन-डोर परमपिता के हाथों में हैं

मेरा जीवन एक निबंध की भाँति हैं
इसमें और मेरे जीवन में अपार बोरीयत हैं
दोनों प्रेम, स्नेह, रस, रंग, खुशी से परे हैं
इसमें भावनाएँ नहीं हैं, कोरा सिद्धांत हैं

मेरा जीवन एक काव्य सा हैं
जिसमें कभी करुणा, कभी हास्य, क्रोध
कभी जुगुप्सा, कभी उत्साह, आश्चर्य, शांति
कभी शृंगार, कभी भय, भक्ति, वात्सल्य होता हैं

मेरा जीवन एक जीवनी की तरह हैं
जिसमें व्यक्ति दूसरे का जीवन-वृत्त लिखता हैं
उसी तरह मैं भी खुद के कार्य, कर्तव्य छोड़
दूसरों के कार्य संपादन में निहित रहता हूँ

मेरा जीवन एक आत्मकथा की भाँति हैं
जिसमें व्यक्ति स्वयं को केंद्र में रख लिखता हैं
उसी तरह मैं भी परहित को छोड़
स्व-अर्थ सिद्धि में लगा रहता हूँ

मेरा जीवन एक यात्रा वृत्तांत हैं
जिसमें व्यक्ति के सफ़र का वर्णन होता हैं
उसी प्रकार मनुष्य भी शून्य से शिखर की, 
शैशवकाल से वृद्धावस्था की निरंतर यात्रा करता हैं

मेरा जीवन भी एक संस्मरण, रेखाचित्र की भाँति हैं
जिसमें मेरे जीवन की कई घटनाएँ उल्लिखित हैं
मेरे सुख की, दुःख की, प्रेम की
संघर्ष की, दुविधा की, मेहनत आदि की हैं

मेरा जीवन एक कहानी की तरह हैं
जिसमें कल्पना हैं जो यथार्थ की अभिव्यक्ति हैं
उसी तरह मेरे
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