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सबका साथ, सबका विकास

मैं क्षिप्र गति से अपने कर्तव्य पथ
की ओर उन्मुख था
तो ज़रा सा मैं अग्रिम पंक्ति में था
परंतु मैं क्या देखता हूँ
खड़े पश्च पंक्ति में लोग कुछ
कह रहे थे
तो अग्र भाग में होने से
मैं सुन नहीं पाया
लगाया अंदाजा मैंने कि
तुम आगे बढ़ो, हम तुम्हारे पीछे हैं
ऐसा कुछ कह रहे होंगे
लेकिन समय की विडंबना तो देखिये
उसने मुझे उन अनसुने शब्दों 
का भान कराया
हुआ यूँ था कि पश्च पंक्ति के
भ्रातगण मुझे अपने समकक्ष व कमतर
लाना चाह
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