जिंदगी , एक रथ हैं, जो अनवरत हैं, उस पर सवार हूँ मैं
कर्म मेरा सारथी हैं, उस नाव की पतवार हूँ मैं
इस रथ के तुरंग जैसे , सूर्य के सप्ताश्व हैं
जो बिना रूके, अथक, अनवरत
गतिमान हैं, चलायमान हैं
इस ब्रह्मांड में स्वयम् सूर्य, चंद्र और
पृथ्वी सम भूलोक भी
नित्य-निरंतर गतिमान हैं, वेगवान हैं
और परब्रह्म की प्रकृति भी
सदैव, अविराम, परिवर्तनार्थ गतिमान हैं
जो नाना स्वभाव में वर्षा, ग्रीष्म, शरद,
हेमंत, शिशिर, वसंतादि के रूप मे
कर्म मेरा सारथी हैं, उस नाव की पतवार हूँ मैं
इस रथ के तुरंग जैसे , सूर्य के सप्ताश्व हैं
जो बिना रूके, अथक, अनवरत
गतिमान हैं, चलायमान हैं
इस ब्रह्मांड में स्वयम् सूर्य, चंद्र और
पृथ्वी सम भूलोक भी
नित्य-निरंतर गतिमान हैं, वेगवान हैं
और परब्रह्म की प्रकृति भी
सदैव, अविराम, परिवर्तनार्थ गतिमान हैं
जो नाना स्वभाव में वर्षा, ग्रीष्म, शरद,
हेमंत, शिशिर, वसंतादि के रूप मे
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