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मुझे आज़ाद ज़मीं के पन्नों को पढ़ना हैं

मुझे आज़ाद ज़मीं के पन्नों को पढ़ना हैं

मुझे भी दीदार-ए-संविधान करना है


ये नफ़रत की राजनीती अब देखी नहीं जाती

मुझे भी राजनीती के कुछ हिस्सों को बदलना है


आओ जमकर कहें बुरा जो जितना बुरा है

क्यों हमें भी नफ़रत की आग में ज

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