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कभी हकीकत कभी फ़साना लिखता हूँ

कभी हकीकत कभी फ़साना लिखता हूँ 
बीते हुए लम्हों का ज़माना लिखता हूँ 

अपना दिल काबू में रख कर मुझे पढ़ना.. 
आशिक नहीं हूँ बस थोड़ा शायराना लिखता हूँ 

महफिलों में तो रह लेता हूँ सतरं
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