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बेटी की जिंदगी

बेटी के एक चुटकी सिंदूर से,

बट जाता है दो भागों में उनका संसार,

मां बाप ने जन्म दिया कितने नाजों से पाला,

मजबूर होकर भेजना पड़ता है दूसरे के घर द्वार,

बेटी पड़ती है दुविधा मे किसको कहूं मै अपना,

किसको समझूं पराया,

दोनों जगह से मुझे नाम मिला पराया।

बेटी के हाथ बंधा कच्चे धागे की डोरी,

कभ

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