छुआ ना हो, तुझको कभी…
महसूस किया है..
के साँसों सा, कभी रूह सा तुझे,
मख़्सूस* किया है..
ना आँखों में मेरी तुम हो,
ना नज़रों में बसे हो तुम..
मगर तुझको, मेरी धड़कन में ही..
महफ़ूज़ किया है…
चले काफिर, ज़माना है,
कहाँ रोके रुका है ये,
इबादत ने मेरी, दर को तेरे..
मख़्दूम** किया है..
जो
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