आंगन मे फिर से वही नीम की छांव हो जाए
उम्र लौट आए,वही बचपन,वही गाँव हो जाए
मै हार गया तुम जीत गए,अभी और खेलते हैं
अभी शाम दूर है अभी एक और दांव हो जाए
उम्र के इस पड़ाव मे आज भी दौड़ सकता हूँ
मेरे साथ मेरे हमउम्र,तेरा अगर पांव हो जाए
चलो सहरा मे लौटकर फिर भैसों को चराते हैं
वही नदियाँ वही पोखर वही फिर नाव हो जाए
सोचता हूँ सौ जाऊँ एक गहरी नीद मे"आलम"
मेरी आँख
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