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खामोशी से कमजर्फों की तरह हम

खामोशी से कमजर्फों की तरह हम

टूटते रहे हरपल हर्फ़ों की तरह हम


तेरी चाहत का जजिया जमाने को

चुकाते हैं रोज कर्जों की तरह हम


तेरी नजरों मे थोड़े ही सही लेकिन

बुलंद रहेंगे सदा,दर्जों की तरह हम


महर माफ किए तूने मगर फिर भी

अदा करते रहे फर्जों की तरह

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