हक दोस्ती का अदा रिश्तों की तरह कर
तू इबादत कर तो फरिश्तों की तरह कर
एकमुश्त ना चुका ये कर्ज मुहब्बतों का
थोड़ा थोड़ा अदा,किश्तों की तरह कर
ये मुर्दारी छोड़ जिंदा है जिंदा नजर आ
कुछ तो हरारत सी जीस्तों की तरह कर
गुजरे लोगों के लिये मुस्तकबिल ना गंवा
अब याद
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