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हारे का सहारा

तन चोटिल मन बोझिल लागे,

लागे निशा सी भोर।

तेरी माटी में भी ईश्वर,

बसा है क्या कोई चोर।

मग्न रहूं अपनी क्रीड़ा में,

अनभिज्ञता चारों ओर।

ख्वाब आसमा में उड़ने की,

पर टूटी सी है डोर।


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