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गांवों का मेला

कहां गया गांवों का मेला,

गजक मूंगफली का ठेला,

झूलों पर बसती थी बस्ती,

बैठा हूं मैं आज अकेला।


खुदी हुई मिट्टी की भट्टी,

खाओ बर्फी और इमरती,

एक आने में कुल्फी ले लो,

रंग बिरंगी बरफ़ की चुस्की।


कहीं सपेरा बीन बजाता,

नट रस्सी पर खेल दिखाता,

साइकल पर गुब्बारे वाला,

बच्चों की टोली को भाता।


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