धर्म युद्ध's image

फेंक प्रीत का चोला भोले,

धर बैरी का भेष।

शंखनाद में सृष्टि तांडव,

गरज रहे हैं मेघ।


छोड़ वज्र सा तीर साहसी,

चढ़ा धनु पर वेग।

अभी तो तेरे तरकश में,

बाण बहुत हैं शेष।


होने दे अब लहू की वर्षा,

समय काट न करके चर्चा।

शस्त्र उठा के कर दे गर्जन,

बात बनी न करके अर्चन।


डर डर के हर घड

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