
वह निरीह निर्बल निश्छल ,
नयनों से कुछ कहती हैं ।
उसके तन के चिथडे कपड़ों में,
मानवता प्रतिबिम्बित होती हैं ।
कर को आगे करके गीत गाते पथ पर,
आगे बढ़ती जाती है ।
उसके खुशी के गीतों में,
अथाह वेदना झलकती है ।
कुछ ललचायी गीध सी आंखें,
उसके तन को इस कदर घूरती है ।
मानो बगुले के आगे, 
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