नारी का स्वाभिमान 
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नारी का स्वाभिमान Nari ka swabhiman


वह निरीह निर्बल निश्छल ,

नयनों से कुछ कहती हैं ।

उसके तन के चिथडे कपड़ों में,  

मानवता प्रतिबिम्बित होती हैं ।

कर को आगे करके गीत गाते पथ पर, 

आगे बढ़ती जाती है ।

उसके खुशी के गीतों में, 

अथाह वेदना झलकती है ।

कुछ ललचायी गीध सी आंखें,  

उसके तन को इस कदर घूरती है ।

मानो बगुले के आगे, 

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