
धानी चुनरिया ओढ़ के
धरती ने सिंगार किया है
अग्निबाण न छोड़े आज
सूरज से मनुहार किया है
सांझ ढले जब पंछी लौटें<
Read More! Earn More! Learn More!
धानी चुनरिया ओढ़ के
धरती ने सिंगार किया है
अग्निबाण न छोड़े आज
सूरज से मनुहार किया है
सांझ ढले जब पंछी लौटें<