
दरकने लगीं हैं खंडहर की दीवारें अब तो
ज़हन से रौनकों का ज़माना निकलता नहीं
पाँव रोकती हैं उम्र की बैसाखियाँ अब
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दरकने लगीं हैं खंडहर की दीवारें अब तो
ज़हन से रौनकों का ज़माना निकलता नहीं
पाँव रोकती हैं उम्र की बैसाखियाँ अब