
खोल दो सारी खिड़कियाँ ज़हन की
सुनो कभी बात अपने भी मन की
माना कि गहरी हैं घाटियाँ मन की
मगर महक सुगंधित है उपवन की
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खोल दो सारी खिड़कियाँ ज़हन की
सुनो कभी बात अपने भी मन की
माना कि गहरी हैं घाटियाँ मन की
मगर महक सुगंधित है उपवन की