द्रवित दृगों के खारे पानी ने
बेकल मन से ये पूछा
कहाँ है तेरी शोख मस्तियाँ
कहाँ है बचपन सा उत्साह
बुझा बुझा क्यों रहता
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द्रवित दृगों के खारे पानी ने
बेकल मन से ये पूछा
कहाँ है तेरी शोख मस्तियाँ
कहाँ है बचपन सा उत्साह
बुझा बुझा क्यों रहता