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चाय की चुस्की आधी रात
प्यार मुहब्बत की वो बात
चट्टानों पर बीच बहस में
फूको, मार्क्स, दरीदा साथ
नर्म उजाला, भीनी खुश्बू
हाथों से मस होते हाथ
इक मीठी सिहरन दे जाते
हवा सुरीली, उड़ते पात
तन्हाई में साथ निभाते
झींगुर,जुगनू और बरसात
सूनी आँखों में फिर खिलते
हँसते, रोते, गाते ख्व़ाब
झाड़ी, जंगल, झुरमुट भीतर
एक नया अद्भुत संसार
बातें वही, मिटाओ जड़ से
भेदभाव और अत्याचार
ज़ात-पात की गहरी खाई
इनमें गिर मत जाना यार
खो मत जाना सजा हुआ है
नफ़रत, हिंसा का बाज़ार
सीखा यही, पढ़ो, पहचानो
दुनिया के रंगों का सार
सिर्फ़ पढ़ाई जीत सरीखी
उसके हारे से सब हार
'गंगा ढाबे' की वो रौनक
आलू बोंडा नरम-नरम
आलू के वो गर्म परांठे
जिसमें बस आलू था कम
चटनी और समोसे का तो
सभी भरा करते थे दम
'कीचा' में खाने को अक्सर
पैसा पड़ जाता था कम
देख उडीपी की थाली को
ललचाते रहते थे हम
'मेज़बान' के महँगे खाने
पर निकला जाता था दम
जिसको जेआरएफ मिलता था
वही वहाँ का राजा था
उसके ज्ञान और पैसे का
बजता रहता बाजा था
हर दावत के बिल फिर उसके
नाम ही काटे जाते थे
फ़ीस वो उनकी भरता था
जो निर्धन घर से आते थे
इतना अपनापन कि कमरों
पर ताला कब लगता था
जिसको पड़े ज़रूरत वो
उन कमरों में रुक सकता था
वो अद्भुत सौहार्द्र का आलम
आज भी हैरां करता है
आज भी जिसको सच में पढ़ना
जेएनयू पे मरता है
'के.सी.' में बेबात टहलना
'टेफ्ला' में सुनना गाने
'पार्थ सारथी' के टी