
आज भी 'शोले' में
'जय', 'वीरू ' और
'ठाकुर' मिलकर
'गब्बर' को मारने के
तरीके ढूंढ रहे है।
गब्बर को मारना ही
जय और वीरू को
'नायक' का दर्जा देगा।
'ठाकुर का इनाम' अलग से।
एक आवाज आज भी
गूंज रही मेरे कानों में,
'इतना सन्नाटा क्यों है भाई'
जनता भी इस उन्माद में
हर हाल में जय और वीरू
से गब्बर को पीटते देखना
चाहती है।
ठाकुर आज भी
कील वाले जूते
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