
मैं चले जाना चाहती हूं
उस अस्तित्वहीन दुनिया में,
जिसका कोई वजूद कभी था ही नहीं
और मेरे पहुंचने के बाद भी होगा नहीं
उसका अस्तित्व तो इसी क्षण में है
जब मैं वहां जाने की ईच्छा रखती हूं।
मैं त्याग देना चाहती हूं
इस बीहड़मयी जीवन को।
अस्तित्व से परे उस सुकून से मिलना है
जो कभी था ही नहीं,
काल्पनिक सुकून कभी होगा ही नहीं
वो तो अभी है,
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