
दर्द सीने में अब भी छुपाए बैठे हैं,
गांँव छूटा जब से रोजी-रोटी के लिए,
मजबूरी में शहर से दिल लगाए बैठे हैं।
वो गलियांँ गांँव की, वो पीपल की छाया,
वो मस्ती पेड़ों पर, वो नदी की धारा,
ये पंछी, हरे-भरे खेत दिल को लुभाते हैं।Read More! Earn More! Learn More!