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मेरा गांँव अब भी याद आता है

दर्द सीने में अब भी छुपाए बैठे हैं,
गांँव छूटा जब से रोजी-रोटी के लिए,
मजबूरी में शहर से दिल लगाए बैठे हैं।

वो गलियांँ गांँव की, वो पीपल की छाया,
वो मस्ती पेड़ों पर, वो नदी की धारा,
ये पंछी, हरे-भरे खेत दिल को लुभाते हैं।

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