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सांस भी ना ले पाऊँगी...

अब और ना तोड़ों मुझे कि टुकड़े ना समेट पाऊँगी।

बहुत प्यासी हूँ मग़र नदी की धारा कहाँ बन पाऊँगी।।


चलती रहूँगी ऐसे ही मुस्कान की बाज़ी नहीं लगाऊँगी।

आँसुओं का दरिया अब ना किसी और को दिखा पऊंगी।।


मेरी मंज़िल तो हैं

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